भ्रामरी प्राणायाम की सम्पूर्ण जानकारी – Bhramari Pranayama (Bee Breathing Technique)
भ्रामरी प्राणायाम (Bhramari Pranayama) मन को शांत करने और क्रोध को दूर करने के लिए उत्तम प्राणायाम (Yoga) है। मन की हताशा और निराशा दूर करने के लिए यह प्राणायाम बहुत ही उपयोगी है। यह प्राणायाम काफी सरल है और इसे दिन में किसी भी वक्त कहीं भी किया जा सकता है। भ्रामरी प्राणायाम मन की व्याग्रता मिटाने का सटीक उपाय है।
वास्तव में भ्रमर का अर्थ ही मधुमक्खी (Bee) होता है। चूँकि इस प्राणायाम को करते वक्त व्यक्ति बिल्कुल मधुमक्खी की तरह ही गुंजन करता है, इसलिए इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते है| यह प्राणायाम अंग्रेज़ी में Bee-Breathing Technique के नाम से भी जाना जाता है।
भ्रामरी प्राणायाम कैसे करें (विधि) – Steps of Bhramari Pranayama
सर्वप्रथम किसी स्वच्छ जगह का चयन करके, आसन बिछा कर पद्मासन अथवा सुखासन में बैठ जायें। मन को शांत कर के अपनी सांस सामान्य कर लें।
अब अपने दोनों हाथों को बगल में अपने दोनों कंधों के समांतर फैला लें, और फिर अपनी कोहनियों को मोड़ कर हाथों को अपने कानों के पास ले आयें। फिर अपनें दोनों नेत्रों (आँखों) को बंद कर लें|
उसके बाद अपने हाथों के दोनों अँगूठों से अपने दोनों कान बंद कर दें। (Note- भ्रामरी प्राणायाम करते वक्त कमर, गरदन और मस्तक स्थिर और सीधे रखने चाहिए)।
अब अपने दोनों हाथों की पहली उंगली को आँखों की भौहों के थोड़ा सा ऊपर लगा दें। और बाकी की तीन तीन उँगलियाँ अपनी आंखों पर लगा दीजिये।
अपने दोनों हाथों को ना तो अधिक दबाएं और ना ही एक दम फ्री छोड़ दें। अपने नाक के आस-पास दोनों तरफ से लगी हुई तीन-तीन उँगलियों से नाक पर हल्का सा दबाव बनायें।
दोनों हाथों को सही तरीके से लगा लेने के बाद अपने चित्त (मन) को अपनी दोनों आंखों के बीछ केन्द्रित करें। (यानि की अपना ध्यान अज्न चक्र पर केन्द्रित करें)।
और अब अपना मुह बिल्कुल बंद रखें और अपने नाक के माध्यम से सामान्य गति से सांस अंदर लें| फिर नाक के माध्यम से ही मधु-मक्खी जैसी आवाज़ (humming sound) करते हुए सांस बाहर निकालें। (Important- यह अभ्यास मुह को पूरी तरह से बंद कर के ही करना है)।
सांस बाहर निकालते हुए अगर “ॐ” का उच्चारण किया जाए तो इस प्राणायाम का लाभ अधिक बढ़ जाता है।
सांस अंदर लेने का समय करीब 3-5 सेकंड तक का होना चाहिए और बाहर छोड़ने का समय 15-20 सेकंड तक का होना चाहिए।
भ्रामरी प्राणायाम कुर्सी(chair) पर बैठ कर भी किया जा सकता है। परंतु यह अभ्यास सुबह के समय में सुखासन या पद्मासन में बैठ कर करने से अधिक लाभ होता है।
भ्रामरी प्राणायाम समय सीमा Bhramari Pranayama Time Duration
सांस अंदर लेने में करीब 3-5 सेकंड और भ्रमर ध्वनी के साथ बाहर छोड़ने में करीब 15-20 सेकंड का समय लगता है| करीब तीन मिनट में 5-7 बार भ्रामरी प्राणायाम किया जा सकता है|
नये व्यक्ति को भ्रामरी प्राणायाम तीन से पांच बार करना चाहिए। कुछ समय तक इस प्राणायाम का अभ्यास हो जाने पर व्यक्ति इसे ग्यारह से इक्कीस बार तक कर सकता है।
भ्रामरी प्राणायाम के समय शिव संकल्प/सकारात्मक संकल्प – Meditation/Nobel Resolution During Bhramari Pranayama
भ्रामरी प्राणायाम करते वक्त यह सोचें की आप समस्त ब्रह्मांड की सकारात्मक शक्तियों से जुड़े हुए हैं। और आप के चारों तरफ सकारात्मकता (positivity) फैली हुई है। अपनें दोनों नेत्रों के बीच एक दिव्य प्रकाश के होनें का आभास करें| यह महसूस करें कि आप का पूरा शरीर, आत्मा, और मन उस दिव्य प्रकाश से प्रकाशित हो रहा है। अपने अन्दर छुपी हुई खुशी और सच्ची शांति का आभास करें।
भ्रामरी प्राणायाम के मुख्य फायदे व लाभ – Benefits of Bhramari Pranayama
भ्रामरी प्राणायाम करने से साइनस(Sinus) के रोगी को मदद मिलती है। इस प्राणायाम के अभ्यास से मन शांत होता है। और मानसिक तनाव (stress/depression) दूर हो जाता है। भ्रामरी प्राणायाम उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को भी लाभदायी होता है।
भ्रामरी प्राणायाम की सहायता से कुंडलिनी शक्ति(Kundalini Power) जागृत करने में मदद मिलती है। और इस प्राणायाम को करने से माइग्रेन/अर्धशीशी (Migraine) के रोगी को भी लाभ होता है।
गर्भवती महिलाओं के भ्रामरी प्राणायाम करने से delivery के वक्त शिशु जन्म सहजता से हो जाता है। और इस प्रणयाम से गर्भवती महिलाओं की अंतःस्त्रावि प्रणाली को अच्छी तरह से काम करने में मदद मिलती है। (फिर भी गर्भवती महिलायें भ्रामरी प्राणयाम डॉक्टर की सलाह के बाद ही करें)।
भ्रामरी प्राणायाम के नित्य अभ्यास से सोच सकारात्मक बनती है और व्यक्ति की स्मरण शक्ति का विकास होता है। तथा इस प्राणायाम से बुद्धि का भी विकास होता है।
भय, अनिंद्रा, चिंता, गुस्सा, और दूसरे अभी प्रकार के मानसिक विकारों को दूर करने के लिए भ्रामरी प्राणायाम अति लाभकारक होता है।
भ्रामरी प्राणायाम से मस्तिस्क की नसों को आराम मिलता है। और हर प्रकार के रक्त दोष मिटते हैं।
थायरोइड(Thyroid) समस्या से पीड़ित व्यक्ति अगर अपनी ठुड्डी को गले से सटा कर (जालंधर बंद) लगा कर भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास करें तो उन्हे शीघ्र लाभ होता है।
भ्रामरी प्राणायाम लंबे समय तक अभ्यास करते रहने से व्यक्ति की आवाज़ मधुर(Sweat Clear Voice) हो जाती है। इसलिए गायन क्षेत्र के लोगों के लिए यह एक उत्तम प्राणायाम अभ्यास है।
भ्रामरी प्राणायाम करते वक्त सावधानी – Precautions/Side-Effects of Bhramari Pranayama
भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास अनुलोम-विलोम प्राणयाम करने के बाद करना चाहिए।
भ्रामरी प्राणायाम करते वक्त अपने कान, आँख या नाक को अधिक ज़ोर से नहीं दबाना चाहिए।
भ्रामरी प्राणायाम हमेशा सुबह के वक्त और खाली पेट करना चाहिए। दिन के अन्य समय पर इसका अभ्यास किया जा सकता है, पर सुबह में भ्रामरी प्राणायाम करने से दुगना फल प्राप्त होता है।
भ्रामरी प्राणायाम करते वक्त दोनों कान के पर्ण की सहायता से कान ढकने होते हैं, अपनी उँगलियों को कान के अंदर नहीं डालना है।
संभव हो तो सांस लेने से जुड़े सभी प्रकार के प्राणायाम किसी योगा एक्सपेर्ट की निगरानी में करें, या उनसे सही सही सीख कर ही करें।
अगर आप भ्रामरी प्राणायाम शाम के वक्त कर रहे हैं तो प्राणायाम करने और शाम का भोजन लेने के समय के बीच कम से कम दो से तीन घंटे का अंतर ज़रूर रखे।
कान में दर्द या किसी भी प्रकार के संक्रमण की शिकायत वाले व्यक्ति को भ्रामरी प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
भ्रामरी प्राणायाम शुरुआत में ही, आवेग में आ कर, अधिक समय तक शुरू नहीं करना चाहिए। जैसे जैसे अभ्यास बढ़ता जाए वैसे ही समय चक्र बढ़ाना चाहिए।
अगर भ्रामरी प्राणायाम करने पर ख़ासी आने लगे, सिरदर्द होने लगे, चक्कर आने लगे या किसी भी अन्य प्रकार की परेशानी होने लगे तो भ्रामरी प्राणायाम डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए|
भ्रामरी प्राणायाम की सम्पूर्ण जानकारी – Bhramari Pranayama (Bee Breathing Technique)